Friday, July 5, 2013

बदलती बरसात

बचपन में बरसात कुछ अलग थी 
वो अल्ल्हड़ मासूम मुस्कराहट अलग थी 

लाती हवाये  थी 
पतंगों की उमंगें 
कागज की कश्ती थी 
पर करती तरंगे 

पानी जो गिरता 
दिल झूम झूम उठता 
बारिश का कलरब 
राग-सितार सा था लगता 

वो सावन की महक अलग थी 
वो अल्ल्हड़ मासूम मुस्कराहट अलग थी 

आज फिर जब बादल है छाये 
लगता साथ उदासी है लाये 
उमड़ घुमड़ घनघोर है बरसे 
नादान मन बिन बात है तरसे 

परिंदे अपने पथ से  भटके 
कुछ पेड़ो की ओट में दुबके 
हम भी अपने आप में सिमटे 
बाहों की उनकी चाह में लिपटे 

पर अंधड़ विकाल बड़ा था 
चहु दिश फण काढ़े काल खड़ा था 
कुछ अभागो के भाग में 
नहीं कल का सूरज लिखा था 

नहीं जो अपने घरोंदो में लौटे 
बच्चे उनके, माँ की आहट को तरसे
भीगे हम भी , पर  अश्को में 
बजह अश्को की, कोई पूछले 
हम इतनी सी, चाहत को तरसे 





Friday, June 14, 2013

अहसास

बेखुदी में था कट रहा सफ़र 
खुद , खुदी से था बेखबर । 

मंजिल की चमक ना आँखों में थी 
ना उसके ना होने की कसक आहो में थी । 

न दिशाओ का ज्ञान था 
पतझड़ के टूटे -पात सा, मैं गुमनाम था । 

मौसम तो बहारो का था 
गुल चमन और सितारों का था । 

पर मैं इक जड़वत पत्थर सा 
खड़ा किनारे पर था । 

तभी इक मंद आहट सी हुई । 
दिल में इक चाहत सी हुई । 

उनके आने का अंदाज निराला सा था । 
बाल रेशम से , और बदन मधुशाला सा था । 

हम उन्हें इकटक देख रहे थे 
दिल को भटकने से रोक रहे थे ।

तभी हमें मंजिल न होने पर , गुमां सा हुआ 
राहो में भटकने में , ख़ुशी का शमां सा हुआ 

महक से उनकी मैं मदहोश हुआ 
निज जडवत अस्तित्व, रूप सागर में आगोश हुआ । 

उस दिन अहसास हुआ ।। 
उस दिन अहसास हुआ ।। 

ख़ुशी ना किसी को पाने या खोने साहस है । 
ख़ुशी का ना मंजिल, ना राहो , ना आशियाने में आवास है ।

चाहे मंजिल हो बेगानी , चाहे रहे हो अनजानी 
ख़ुशी तो साथ हमसफ़र के, होने का अहसास है । 

इसीलिए आज हम, साथ उनकी यादों के हो गये । 
माँझी सा स्थिर , पर सवार लहरों पर हो गये ॥ 







**This poem is flash of inspiration from someone :)

Tuesday, June 11, 2013

' चाहत ' सागर की बूंद की

चाहत  है  मुझको 
बादल  तुझको  पाने  की । 











देखकर  तप सूरज का 
उससा तपी बन  जाने की ।  
चाहत है कुछ  कर जाने की 
पावन जीवन को पाने की । 

कड़वे-खारेपन से दूर 
मीठा नीर बन जाने की । 
मधु में अस्तित्व  पाकर 
फूलो में मुस्काने की । 

चाहत  है  मुझको 
बादल  तुझको  पाने  की । 

साथी से गरमी लेकर 
दिल में आग धधकाने  की । 
मलिन विचारो को तजकर 
हवा से हल्का हो जाने की । 

अपनी ही आशाओं से बढकर 
बादल में आशियां पाने की । 
फिर बैठ हवा के कंधो पर 
जगत भ्रमण कर आने की । 

चाहत  है  मुझको 
बादल  तुझको  पाने  की । 

प्यासा जग-जन-जीवन देखकर 
आशा बन  छा जाने की । 
ममता माँ-धरा की पाकर 
नमी दिल में भर आ जाने की । 

आशा मनु-संतानों  की पाकर 
ऊपर , और ऊपर उठ जाने की । 
व्याकुल राधा की देख विरह 
फिर पानी में बदल जाने की । 

चाहत  है  मुझको 
बादल  तुझको  पाने  की । 

कर्मठता मानव की देखकर 
झुक आने की , झुक आने की । 
नव-नूतन पुष्पों पर छाकर 
प्रियेतम का आलिंगन पाने की । 

श्वेत हिमालय में गिरकर
ऊँचा चरित्र उठाने की । 
आशीर्वाद धरा का पाकर 
हिम सा धवल बन जाने की । 

चाहत  है  मुझको 
बादल  तुझको  पाने  की ।